भगवती स्तोत्र

भगवती स्तोत्र | जय भगवती देवी नमो वरदे स्तोत्र | Bhagwati Stotra

भगवती स्तोत्र एक चमत्कारिक देवि स्तुति है । इसे दुर्गा स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है। इसकी रचना महर्षि वेद व्यास ने की थी।

माँ भगवती दुर्गा को समर्पित यह स्तोत्र सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है । इसका पाठ सभी पापों का नाश करने वाला, धन संपत्ति प्रदान करने वाला, दु:खों और संकटों को मिटाने वाला है । इसके पाठ से पत्नी और पुत्र सुख प्राप्त होता है ।

अतः माँ के भक्तों को पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ नित्य प्रतिदिन इसका पाठ करना चाहिए ।

श्री भगवती स्तोत्र पाठ आरंभ

जय भगवति देवि नमो वरदे,
जय पाप विनाशिनी बहुफलदे।
जय शुम्भ निशुम्भ कपाल धरे,
प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे।।1।।

भावार्थ : हे वरदान प्रदान करने वाली देवि! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट करने वाली और अनंत फल देने वाली देवि! तुम्हारी जय हो! हे शुम्भ-निशुम्भ के मुण्डों को धारण करनेवाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे मनुष्यों के कष्टों को हरनेवाली देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं।।1।।

जय चन्द्र दिवाकर नेत्र धरे,
जय पावक भूषित वक्त्र वरे।
जय भैरव देह निलीन परे,
जय अन्धक दैत्य विशोषकरे।।2।।

भावार्थ : हे सूर्य-चंद्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान दैदीप्यमान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुर का शोषण करने वाली देवि तुम्हारी जय हो, जय हो।।2।।

जय महिष विमर्दिनी शूलकरे,
जय लोक समस्तकपापहरे।
जयदेवि पितामह विष्णुनते,
जय भास्कर शक्रशिरोवनते।।3।।

भावार्थ : हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो।।3।।

जय षण्मुख सायुध ईशनुते,
जय सागर गामिनि शम्भुनुते।
जय दुःख दरिद्र विनाशकरे,
जय पुत्रकलत्र विवृद्धिकरे।।4।।

भावार्थ : सशस्त्र शंकर और कार्तिकेयजी द्वारा वन्दित होने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलनेवाली गंगारूपिणी देवि! तुम्हारी जय हो। दुख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की वृद्धि  करने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो।।4।।

जय देवि समस्त शरीरधरे,
जय नाकविदर्शिनी दुख हरे।
जय व्याधि विनाशिनी मोक्षकरे,
जय वांछित दायिनी सिद्धिवरे।।5।।

भावार्थ : हे देवि! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दु:ख हारिणी हो। हे व्याधिनाशिनी देवि! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवांछित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवि! तुम्हारी जय हो।।5।।

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं यः पठेन्नियतःशुचिः।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा।।6।।

भावार्थ : जो कहीं भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस महर्षि व्यास द्वारा रचित इस स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं।।6।।

भगवती स्तोत्र के क्या लाभ हैं?

भगवती स्तोत्र का पाठ समस्त व्याधियों को खत्म करता है, धन धान्य को बढ़ाता है ।
पत्नी और पुत्र का सुख देता है। दु:खों का नाश करता है ।
मोक्ष प्रदान करने वाला यह भगवती स्तोत्र सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है । इसके नित्य प्रतिदिन पाठ से माँ भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है ।

भगवती स्तोत्र के पाठ की विधि क्या है ?

शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध होकर भगवती माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए घर पर ही इस स्तोत्र का पाठ करें।

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