श्री राम प्रातः स्मरण स्तोत्र प्रातःकाल पढ़ा जाने वाला भगवान श्री राम का मन्त्र है, जिसे अगस्त्य ऋषि द्वारा लिखा गया है। इसमें भगवान श्रीराम के सुन्दर स्वरुप का वर्णन है।
प्रातः काल इसका पाठ करने से शरीर ऊर्जावान रहता है, तथा मन नहीं भटकता। प्रभु श्री राम की कृपा प्राप्ति हेतु इस स्तोत्र का पाठ सुबह उठकर भगवान का ध्यान करते हुए करें।
श्री राम प्रातः स्मरण स्तोत्र

प्रातःस्मरामि रघुनाथमुखारविन्दं,
मन्दस्मितं मधुरभाषि विशालभालम्।
कर्णावलम्बिचलकुण्डलशोभिगण्डं,
कर्णान्तदीर्घनयनं नयनाभिरामम्॥१॥
भावार्थ – जो मधुर मुस्कानयुक्त, मधुर भाषी, और विशाल भाल से सुशोभित हैं, कानों मे लटके हुए चंचल कुण्डलों से जिनके दोनों कपोल शोभित हो रहे हैं । तथा जो कर्णपर्यंत विस्तृत बड़े बड़े नेत्रों से शोभायमान और हमारे नेत्रों को आनंद देने वाले हैं । श्री रघुनाथ जी के ऐसे मुखारविंद का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ ।
प्रातर्भजामि रघुनाथकरारविन्दं
रक्षोगणाय भयदं वरदं निजेभ्यः।
यद्राजसंसदि विभज्य महेशचापं
सीताकरग्रहणमङ्गलमाप सद्यः ॥२॥
मैं प्रातः काल श्री रघुनाथ जी के करकमलों का स्मरण करता हूँ, जो राक्षसों को भए देने वाले और भक्तों को वर देने वाले हैं तथा जिन्होंने राजसभा मे भगवान शंकर का धनुष तोड़कर शीघ्र ही भगवती सीता का मंगलमय पाणिग्रहण किया था । ।
प्रातर्नमामि रघुनाथपदाररविन्दं
वज्राङ्कुशादिशुभरेखि सुखावहं मे।
योगीन्द्रमानसमधुव्रतसेव्यमानं
शापापहं सपदि गौतमधर्मपत्न्याः ॥३॥
मैं प्रातः काल श्री रघुनाथ जी के चरण कमलों को नमस्कार करता हूँ जो वज्र, अंकुश आदि शुभ रेखाओं से युक्त, मेरे लिए सुखदाई, योगियों के मन मधुप द्वारा सेवित तथा गौतम पत्नी अहल्या के शाप को दूर करने वाले हैं ।
प्रातर्वदामि वचसा रघुनाथनाम
वाग्दोषहारि सकलं शमलं निहन्ति।
यत्पार्वती स्वपतिना सह भोक्तुकामा
प्रीत्या सहस्रहरिनामसमं जजाप ॥४॥
मैं प्रातः काल अपनी वाणी से श्री रामचंद्र जी के नाम का जप करता हूँ , जो वाणी के दोषों को नाश करने वाला और सभी पापों को हरने वाला है । तथा जिसे पार्वती जी ने अपने पति भगवान शंकर के साथ भोजन करने कि इच्छा से, भगवान के सहस्त्रनाम के सदृश प्रेमपूर्वक जपा था ।
प्रातः श्रये श्रुतिनुतां रघुनाथमूर्तिं
नीलाम्बुजोत्पलसितेतररत्ननीलाम्।
आमुक्तमौक्तिकविशेषविभूषणाढ्यां
ध्येयां समस्तमुनिभिर्जनमुक्तिहेतुम् ॥५॥
मैं प्रातः काल रघुनाथजी की वेदवंदित मूर्ति का आश्रय लेता हूँ, जो नीलकमल और नीलमणि के समान नीलवर्ण , लटकते हुए मोतियों की माला से विभूषित, समस्त मुनियों की ध्येय, तथा भक्तों को मोक्ष प्रदान करने वाली है ।
यः श्लोकपञ्चकमिदं प्रयतः पठेद्धि
नित्यं प्रभातसमये पुरुषः प्रबुद्धः ।
श्रीरामकिङ्करजनेषु स एव मुख्यो
भूत्वा प्रयाति हरिलोकमनन्यलभ्यम्॥६॥
जो पुरुष प्रातःकाल नींद से जागकर जितेंद्रियभाव से इन पांचों श्लोकों का नित्य पाठ करता है, वह श्री राम जी के सेवकों मे मुख्य होकर श्री हरि के लोक को, जो दूसरों के लिए दुर्लभ है, प्राप्त होता है ।